मेडिकल मिस्‍ट्री सुलझाने वाली नेटफ्लिक्‍स की सीरीज़ 'डायग्नोसिस'

मेडिकल मिस्‍ट्री सुलझाने वाली नेटफ्लिक्‍स की सीरीज़ 'डायग्नोसिस'

के. संगीता

मैट ली एक 20 वर्षीय कॉलेज स्‍टूडेंट है। उन्‍हें बेहोशी के क्षणिक दौरे पड़ते हैं और उस समय उन्‍हें ‘दे जावू’ जैसा अनुभव होता है। इस दौरान उनकी दिल की धड़कन भी कुछ समय के लिए रूक जाती है।

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6 वर्षीय काम्यिाह मोरगन कुछ सेंकड के लिए बेहोश सी हो जाती है। इस दौरान वह पैरालिसि‍स की स्थिति में पहुंच जाती है और उसका पूरा शरीर बेजान हो जाता है। ये दौरें एक दिन में 300 बार तक पड़ते हैं।

23 वर्षीय एंजेल पार्कर वर्षों से रोज असहनीय दर्द अनुभव कर रही है जो उनके पैरों से शुरू होकर उनकी कमर तक जाता था। एक समय में हाई स्‍कूल एथलीट होने के बाद अब वे इस स्थिति में आ गई हैं जहां वे कोई शारीरिक गतिविधि नहीं कर सकती थीं।

इन तीनों मरीजों में एक बात समान है, वह यह कि कई डॉक्‍टरों और अस्‍पतालों के चक्‍कर लगाने और कई टेस्‍ट से गुजरने के बाद भी इन्‍हें इनके रोग का निदान नहीं मिल पा रहा था। चिकित्‍सकों के लिए इनकी बीमारी एक रहस्‍य बनी हुई थी। ये सभी एक सरल से लगने वाले जटिल प्रश्‍न का उत्‍तर पाना चाहते थे कि “डॉक्‍टर मुझे असल में हुआ क्‍या है?”

इस प्रश्‍न का उत्‍तर उन्‍हें मिला डॉ सैंडर्स के रूप में। पत्रकार के तौर पर अपने करियर की शुरूआत करने वाली और ‘हरिकेन ह्यूगो’ के लिए रिपोर्टिग में एमेली अवार्ड पाने वाली लीसा सैंडर्स की दिलचस्‍पी मेडिसन से जुड़े रहस्‍यों को सुलझाने में अधिक थी इसलिए 10 साल रिपोर्टिंग करने के बाद लीसा ने मेडिकल के क्षेत्र में प्रवेश किया और येल यूनिवर्सिटी में इण्‍टरनल मेडिसिन में प्रोफेसर बनी।

अपनी प्रैक्टिस के दौरान उनके सामने कई मेडिकल मिस्‍ट्री आईं और इनके बारे में अधिकाधिक लोगों को बताने के लिए उन्‍होंने 2002 में ‘दि न्‍यूयार्क टाइम्‍स’ में डॉयग्‍नॉसिस नाम से कॉलम लिखना शुरू किया। अपने कॉलम में वे अपने मरीज़ों, सहकर्मी चिकित्‍सकों के मरीजों से जुड़ी रहस्‍यमयी बीमारियों को एक कहानी के रूप में पेश करती थी और अगली कड़ी में उसका निदान बताती थी। उनके इसी कॉलम से प्रेरित होकर फॉक्‍स टी.वी ने 2004 में ‘हाऊस एमडी’ नाम की सुपरहिट सीरीज़ बनी जिसमें एक डॉक्‍टर दुर्लभ बीमारियां और मेडिकल मिस्‍ट्री सुलझाता है। सैंडर्स इस शो की मेडिकल कन्‍सलटेंट थीं। 

इसे और अधिक व्‍यापक बनाने के लिए सैंडस्र इण्‍टरनेट और सोशल मीडिया को ऐसी मेडिकल मिस्‍ट्रीज से जोड़ने की सोची। उन्‍होंने एक ऐसा प्‍लेटफार्म तैयार किया जहां मरीज विश्‍वभर के चिकित्‍सकों, विशेषज्ञों, समान बीमारी से पीडि़त या ठीक हुए व्‍यक्तियों से एक साथ संपर्क कर सकें और उनकी सलाह पा सके। इसे लीसा सैंसर्ड ने एक दिलचस्‍प नाम दिया “क्राउडसोर्सिंग” और शुरूआत हुई डायग्‍नॉसिस सीरीज़ की।

इस सीरीज में दिखाए गए केस सेंडर्स को उनके सहयोगी डॉक्‍टरों मित्रों और शो के निर्माताओं से मिले। उन्‍होंने प्रत्‍येक केस को एक रहस्‍यमयी कहानी की तरह सोशल मीडिया पर रखा और उसका निदान ढूंढने के लिए पब्लिक, विशेषज्ञों, समान लक्षणों से पीडि़त अन्‍य मरीज़ों को अपनी थ्‍योरियां और अनुभव बताने के लिए वीडियो भेजने को कहा। सैंडर्स को अपनी उम्‍मीद से कहीं ज्‍यादा प्रति केस 100 से लेकर 1,600 तक रिस्‍पांस मिले। सैंडर्स और उनकी टीम ने कई घंटे लगाकर एक-एक करके निदानों का अध्‍ययन किया और सटीक लगने वाले निदानों से मरीज की जांच शुरू की। इससे कई मरीजों को अपनी बीमारी का कारण और ईलाज दोनों ही मिले।  

सैंडर्स कहती हैं कि यह बहुत ही हैरान करने वाला है कि आप एक कहानी इण्‍टरनेट पर पेश करो  और वह विश्‍वभर में न सिर्फ सुनी जाए बल्कि उस पर जवाब भी मिले। वे कहती हैं कि मेडिसिन के क्षेत्र में हम हर साल और अधिक जानते जाते हैं पर अब भी बहुत कुछ जानने वाला है। सैडर्स के अनुसार जिन लोगों को अपने रोग का निदान नहीं मिल रहा उन्‍हें कहीं से मिला एक छोटा सा क्‍लू भी कारगर साबित हो सकता है और ऐसा कुछ मिल सकता है जो अभी खोजा जाना बाकी हो।

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क्राउडसोर्सिंग के जरिए एंजेल पार्कर को मिलीं इटालियन पीडियाट्रिक हॉस्पिटल की अनुसंधानकर्ता, मेटॉबोलिक रोग विशेषज्ञ मार्टा जिनकी सलाह मानकर वे जेनेटिक एनेलिसिस के लिए इटली गई और दो महीने के बाद वैज्ञानिकों ने वीडियो चैट पर उन्‍हें उनकी सही बीमारी और ईलाज दोनों बता दिए। ठीक इसी तरह से मैट ली को मालूम हुआ कि उनकी बीमारी मनोविज्ञान से जुड़ी हुई है। इस सीरीज़ में ऐसे 7 ऐपिसोड है जिसमें रहस्‍यमयी रोगों से पीडि़त 7 लोगों के केसेस हैं।

 

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